कोरोनाशॉक में ब्राज़ील के हाशिये पर रहने वाले युवा

डोजियर 33: 

The Grito dos Excluídos (‘Cry of the Excluded’) mobilisation brings together post office workers on strike and educators who are occupying the streets in downtown Campinas (Brazil), 7 September 2020. Guilherme Gandolfi / Fotos Públicas

कवर फ़ोटो ग्रिटो डॉस एक्सक्लुइडोस (‘अपवर्जितों की आवाज़’) विरोध प्रदर्शन ने डाकघर के हड़ताली कर्मचारियों को तथा कैंपिनास (ब्राज़ील) के मुख्य शहर पर क़ब्ज़ा जमाए हुए शिक्षकों को एक साथ लामबंद कर दिया, 7 सितंबर 2020। गुइलहरमे गॉन्डेल्फ़ी/ फोटोस पुब्लिकास

 

परिचय

दुनिया भर में, युवा महत्वपूर्ण राजनीतिक कर्ता बन गए हैं, ख़ासकर 1960 के दशक से। श्रमिकों, महिलाओं, और अलगअलग रंग के लोगों के साथ, युवा एशिया, अफ़्रीका और लैटिन अमेरिका में राष्ट्रीय, उपनिवेशवादविरोधी, साम्राज्यवादविरोधी मुक्ति की लड़ाई के मुख्य नायक रहे हैं। उन्होंने सत्ता प्रतिष्ठान और उनके राज्य संस्थानों (जैसे जेल प्रणाली और मानसिक रोगी अस्पतालोंविशेष रूप से युवा डिटेंशन सेंटर के ख़िलाफ़ विद्रोह) के ख़िलाफ़ होने वाले विद्रोह का भी नेतृत्व किया है। युवा जैसेजैसे संगठित हुए उन्होंने आंदोलन शुरू किया और आने वाले दशकों में शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास के अधिकार के लिए, साथहीसाथ अपने शरीर के अधिकार के लिए, प्रेम करने के अधिकार के लिए, और हर उस व्यक्ति के अधिकार के लिए संघर्ष का नेतृत्व किया जो ख़ुद को चाहे जिस रूप में, जिस पहचान के साथ प्रस्तुत करना चाहता हो। 

ब्राज़ील में, 1970 और 1980 का दशक एक प्रभावशाली युग था। 1985 में सैन्य तानाशाही के अंत और 1988 में एक नये संविधान को लागू होने के अलावा, इस समय अवधि में वामपंथी सामाजिक संगठनों ने अपनी बुनियाद और संरचना को मजबूत किया और अपना विस्तार किया; जिसे भूमिहीन श्रमिकों के आंदोलन (MST), वर्कर्स पार्टी (PT), बेस एक्लेसियल कम्युनिटीज़ [चर्च से संबद्ध] (BECs), और यूनिफ़ाइड वर्कर्स सेंट्रल (CUT) के विस्तार के रूप में देखा जा सकता है। पिछले कुछ दशकों में लागू की गई औद्योगीकरण की नीतियों ने इस अवधि में सामाजिक रूप से खलबली पैदा कर दी, जिसकी वजह से सामाजिक और आर्थिक अंतर्विरोध तेज़ हो गया। एक नया श्रमिक वर्ग उभरा और सामाजिक संघर्षों का नायक बन गया, जिसने भोजन की कमी और महंगाई के ख़िलाफ़ संघर्ष के साथसाथ काम करने की बेहतर परिस्थितियों की माँग की। इन आंदोलनों ने अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले नये सामाजिक नायकों को एक मंच पर इकट्ठा कर दिया: कारख़ाने के श्रमिकों के साथसाथ स्थानीय समितियों, ‘गृहिणी’ महिलाओं के संगठन और स्वास्थ्य सेवा आंदोलनों ने अधिकारों की माँग की।

जैसेजैसे लोग संगठित हुए और उनके संघर्ष में गुणात्मक बदलाव आया, इन संगठनों के संयुक्त प्रयासों के भी व्यवस्थित होने की भी लम्बी प्रक्रिया शुरू हुई। इसने स्थानीय अनुभवों को राष्ट्रव्यापी स्तर पर ले जाने तथा उस समय के जन आंदोलनों के लिए अधिक सैद्धांतिक ऊर्जा की बुनियाद रखी। वामपंथी जन संगठनों ने महसूस किया कि राजनीतिक परिदृश्य पर विचार करने और सामूहिक सोच को व्यवस्थित करने की कितनी अधिक आवश्यकता थी। उन्होंने आने वाले दशकों में अपने काम के आधार के रूप में इस संचित ज्ञान का उपयोग किया, जिसका लक्ष्य प्रत्येक समय अवधि की चुनौतियों के लिए ज़मीनी स्तर पर काम करना था।

जन संगठनों के साथ अध्ययन और उन्हें व्यवस्थित करने वाली इस विरासत को जारी रखने के लिए, ट्राइकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान(ब्राज़ील) में हमारे शोध के लक्ष्यों में से एक है ब्राज़ील के युवा के बारे में समझना, जो शहरों में हाशिये पर रहते हैं। ये युवा कैसे जीते हैं, वे क्या चाहते हैं, वे कैसे व्यवहार करते हैं, औरहाल ही मेंकोरोनाशॉक के दौरान उनपर क्या प्रभाव पड़ा है, इसे जाननेसमझने की भी कोशिश की गई है। इन मुद्दों पर विचार करने के लिए हमने इस डोजियर को तीन भागों में विभाजित किया है। पहले भाग में इस बात पर विचार किया गया है कि युवा होने का क्या मतलब है, और एक श्रेणी के रूप में ऐतिहासिक रूप इससे क्या अभिप्राय लिया जाता रहा है; दूसरे भाग में उन युवाओं की तस्वीर पेश की गई है जो हाशिये पर रहते हैं, यह तस्वीर उस ज़मीनी शोध पर आधारित है जो हमने 2019 में किया था; और तीसरे भाग में उन चुनौतियों पर चर्चा की गई है, जिसका सामना कोरोनाशॉक के दौरान युवा कर रहे हैं।

 

Faced with government neglect in favelas, collectives in Morro da Providência come together to install sinks with water and soap on the walls of the hillsides. Rio de Janeiro, Brazil, 2020. Douglas Dobby / Mídia Ninja

फ़ेवेलास में सरकारी उपेक्षा का सामना कर रहे मोरो डा प्रोविडेंसिया में सामूहिक स्थलों (collectives) ने अपनी ओर से पहल करते हुए पहाड़ी ढलानों पर पानी और साबुन के साथ सिंक की व्यवस्था की। रियो डी जनेरियो, ब्राज़ील, 2020। 
डगलस डॉबी/मिडिया निंजा

 

भाग 1  ‘युवा’ से हमारा क्या मतलब है?

वर्ष 1985 को संयुक्त राष्ट्र (यूएन) द्वारा ‘युवा वर्ष’ घोषित किया गया था। इस श्रेणी का राजनीतिक इस्तेमाल लैटिन अमेरिका में बाहरी ऋण संकट के संदर्भ में होना शुरू हुआ, जब राजनीतिक श्रेणी के रूप में युवाओं पर बहस होने लगी। लेकिन ‘युवा’ का क्या मतलब है और इसके बारे में बहस क्यों हो रही है? इस सवाल का जवाब देने की दिशा में पहला क़दम है एक श्रेणी के रूप में युवा की समीक्षा करना है। ऐतिहासिक रूप से इसकी निर्मितिऔर विभिन्न राजनीतिक परिदृश्यों में इसमें पाई जाने वाली विविधतातथा कर्ता के रूप में ऐतिहासिक और सामाजिक प्रक्रियाओं में युवा की भूमिका, दोनों को समझने की ज़रूरत है।

 

रैखिक विकास

1904 में स्टैनले हॉल द्वारा डार्विनवाद और विकासवाद के सिद्धांत से प्रेरित होकर युवा विषय पर लिखी पहली किताब प्रकाशित की गई थी। विकासवाद ने इतिहास और प्रगति की एक सार्वभौमिक धारणा को माना और यह भी माना कि सभी मानव समाजों की नियति एक समान है: ‘सभ्य’ समाज का एकीकरण। दुनिया को वर्गीकृत करने के इस तरीक़े के अनुसार यूरोपीय समाज पहले से ही सभ्यता के स्तर पर पहुँच गए थे, और इसलिए नागरिकता के सार्वभौमिक मानक का प्रतिनिधित्व करते थे। इसी दौरान, लैटिन अमेरिका और अफ़्रीका में मूलनिवासी समुदायों को अविकसित, आदिम और बर्बर के रूप में देखा गया। 

युवाओं पर लिखी पहली किताब ने उस विकासवादी तर्क का पालन किया, जो मानव समाजों के लिए लागू किया गया था और मानव विकास को एक रैखिक, सार्वभौमिक प्रक्रिया मानता है, जिसमें युवा को एक संक्रमणकालीन और निर्माणात्मक चरण के रूप में देखा गया था जो 14 से 26 वर्ष की आयु के बीच का समय होता है।

 

अवगुण और लापरवाही

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, अन्य शोधकर्ताओं ने मानव विकास के युवा चरण को भावनात्मक अस्थिरता, विद्रोह, अलगाव, उदासी, आक्रामकता और अन्य विचारों से जोड़ा, जो आज भी लोकप्रिय कल्पना में प्रतिध्वनित होता है। एक प्रमुख दृष्टिकोण व्याप्त हो गया, जिसमें युवा एक नाज़ुक और नैतिक तथा भावनात्मक रूप से अपूर्ण समूह के रूप में देखा जाने लगा, जिसने नैतिक व्यवस्था के लिए ख़तरा पैदा किया; विचलन के विचार से जुड़े होने की वजह से उन्हें समाज और यहाँ तक ​​कि ख़ुद के लिए ख़तरे की तरह देखा गया। चूँकि उन्हें समाज और स्वयं दोनों के लिए एक ख़तरे के रूप मेंइस विचार पद्धति के अनुसारदेखा जाता है, इसलिए युवा को निश्चित रूप से अनुशासित होना जाना चाहिए। यह धारणा कथित रूप से कमज़ोर समूह के रूप में युवाओं के प्रति झुकाव और देखभाल के विचारों की ओर ले जाती है।

विशेष रूप से संकट के समय में, सत्तावादी समाधान एक विकल्प के रूप में उभरा। 1920 के दशक मेंजैसा कि दुनिया ने फ़ासीवाद और नाज़ीवाद का उदय देखाहिटलर यूथ, फालान्हे [Falange] (स्पैनिश युवा जिन्होंने फ्रेंको की तानाशाही का समर्थन किया), और इतालवी बलीला (मुसोलिनी समर्थक) सत्तावादी सरकारों के भीतर काम करने वाली महत्वपूर्ण शक्तियाँ थीं।

 

वीर और निडर युवा

1968 में और 1970 के दशक में, दुनिया भर में और ख़ासतौर पर लैटिन अमेरिका, कैरिबियन देशों तथा अफ़्रीका में  जो विद्रोह फैला उसका संबंध राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन और स्वतंत्रता संघर्ष से था। इन घटनाओं में युवाओं की भागीदारी अभूतपूर्व थी। दक्षिण अफ़्रीका में, रंगभेदी शासन के ख़िलाफ़ उग्र संघर्ष में युवाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रंगभेद विरोधी आंदोलन के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक स्टीव बीको, जो दक्षिण अफ़्रीकी छात्र संगठन तथा अश्वेत चेतना आंदोलन के सहसंस्थापक थे, ‘ब्लैक इज़ ब्यूटीफ़ुल’ के नारे की वजह से जिनकी बहुत प्रशंसा हुई। 1976 में सोवेटो विद्रोह के दौरान तेरह वर्षीय हेक्टर पीटरसन सहित तेईस युवा छात्रों को एक नरसंहार में मार दिया गया। ये लोग रंगभेदी पुलिस के ख़िलाफ़ तथा अश्वेत इलाक़ों में स्थित स्कूलों में अफ़्रीकानउपनिवेशवादियों की भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाए जाने को लेकर विरोध कर रहे थे।

गिनीबिसाऊ में अमिलकार कैब्रल के नेतृत्व में राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष ने साक्षरता और युवाओं तथा वयस्कों के लिए चलाई जा रही लोकप्रिय शिक्षा परियोजनाओं पर एक ज़बरदस्त छाप छोड़ा। इस संघर्ष का प्रभाव एक तरंग की तरह देश की सीमाओं से परे ब्राज़ील तक फैल गया, जहाँ पाउलो फ्रीयर के विचारों पर कैब्रल का प्रभाव पड़ने वाला था। लोकतांत्रिक गणराज्य कौंगो तथा सेनेगल में युवाओं ने 1970 और 1980 के दशक में क्रांतिकारी तथा राष्ट्रीय मुक्ति की प्रक्रियाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मैक्सिको सिटी में, मैक्सिको के राष्ट्रीय स्वायत्त विश्वविद्यालय (UNAM) के सैन्य क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ विरोध की बढ़ती लहर के बाद विरोध करने वाले वामपंथी युवाओं का सैन्य शासन द्वारा क्रूरता से दमन किया गया। टलाटेलोको नरसंहार के दौरान, जो इसी नाम से जाना जाता है, 1968 में ओलंपिक उद्घाटन समारोह से पहले सैकड़ों लोग मारे गए थे।

 

In the Soweto Massacre (South Africa) in 1976, twenty-three students were killed for protesting against apartheid policies and the adoption of Afrikaans as the language spoken schools in Black regions.

1976 में सोवेटो नरसंहार (दक्षिण अफ़्रीका) में, रंगभेद की नीतियों और अश्वेत क्षेत्रों के स्कूलों में बोलचाल की भाषा के रूप में अफ़्रीकांस भाषा को अपनाने का विरोध कर रहे तेईस छात्रों की हत्या कर दी गई थी।

 

क्यूबा में, जूलियो एंटोनियो मेल्ला प्रेरणा के स्रोत बने। भले ही 1929 में छब्बीस साल की उम्र में उनकी हत्या कर दी गई, लेकिन वे अपने पीछे महान विरासत छोड़ गए। मेक्सिको में अपने निर्वासन के वर्षों के दौरान राजनीतिक संघर्ष को संगठित करने, क्यूबा के छात्र आंदोलन तथा संघर्ष को आयोजित करने की दिशा में एक उदाहरण बन गए।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जिन युवाओं का समाजीकरण हुआ उनके प्रभाव को उजागर करना आवश्यक है, जिन्होंने उत्पादन के संबंधों तथा रीतिरिवाजों दोनों के ही संदर्भ में अपनी सांस्कृतिक विरासत को चुनौती देनी शुरू की। जिन लोगों का जन्म 1940 और 1950 के दशक में हुआ उन्हें निडर और मुक्तिकामी के रूप में देखा जाता है। ये वो पीढ़ी है जो पूँजी और युद्ध द्वारा शासित शहरी जीवन के इतर शांति, स्वतंत्र प्रेम और सांप्रदायिक सौहार्द्र वाला जीवन जीने का आहवान करती है। वियतनाम युद्ध का जिस ज़िम्मेदारी के साथ विरोध किया गया वह उस युग के युवाओं की स्पष्ट अभिव्यक्ति है। इस तरह के आयोजनों ने राजनीतिक कार्यकर्ता तथा सामाजिक परिवर्तन के एजेंट के रूप में युवाओं के दृष्टिकोण को सुदृढ़ किया।

फ्रांस में, 1968 के विद्रोह ने राज्य, उत्पादन के संबंधों, नौकरशाही तथा स्कूलों, कारख़ानों, मनोचिकित्सा संस्थानों जैसी सत्ता जिससे लोग जुड़े हुए थे, उन सब की कड़ी आलोचना की। हालाँकि विश्वविद्यालय और हाई स्कूल के युवाओं ने विद्रोह शुरू किया, उनके बाद इसने आम हड़ताल का रूप ले लिया, जो फ्रांस के इतिहास की सबसे बड़ी हड़ताल थी, जिसमें श्रमिक वर्ग के युवाओं की भागीदारी महत्वपूर्ण थी। मई 1968 के विद्रोह ने संबंध विकसित करने और प्यार में रिश्ते बनाने के आधिपत्यशाली तरीक़ों के विरुद्ध आलोचनात्मक एजेंडा प्रस्तुत किया और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए मज़बूती से आवाज उठाई, जिसने अंततः नारीवादी आंदोलन को मजबूत करने में मदद की और बाद में LGBTQIA+ आंदोलनों और अधिकारों के लिए संघर्ष में इसकी गूँज सुनाई देने वाली थी।

 

युवा, उपभोक्ता बाज़ार, और अनिश्चित काम

पूँजीवादी दुनिया में, युद्ध के बाद बाज़ार तथा उपभोग की संस्कृति में वृद्धि हुई, जिसकी वजह से   1970 और 1980 के दशक में समृद्ध युवा बाज़ार विकसित हुए। इस समय अवधि में, मीडिया और सांस्कृतिक उद्योग के माध्यम से बड़े पैमाने पर युवाओं को उन्नत पूँजीवाद के सांस्कृतिक निर्माण और इसकी अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाने लगा।

1980 के दशक के बाद, जीवन चक्र संकट में प्रवेश करता है, जिसे उद्योग ने सक्षम बनाया था, और जिसे व्यक्ति के प्रारंभिक वर्षों के लिए एक रैखिक रास्ता माना गया थायुवावस्था से वयस्क होने पर श्रम बल का हिस्सा बनने से लेकर वृद्धावस्था के सुकून में इसका समापन होने तकवह घुमावदार चक्र में परिवर्तित हो गया, जो कुछ भी युवाओं के अस्थायी और अस्थिर अवस्था के रूप में देखा गया था वह एक स्थायी चरण बन गया। यह प्रक्रिया डिजिटल और सूचना युग में नवउदारवाद के तहत पूरी हुईअनिश्चित काम के युग की शुरुआत।

1990 के दशक में, शोधकर्ताओं ने युवाओं तथा वर्ग, लिंग और नस्ल की असमानताओं के बीच के संबंध को देखना शुरू किया। इन अध्ययनों ने इस विचार को चुनौती दी कि युवा की श्रेणी को केवल उम्र से परिभाषित नहीं किया जाए और प्रस्तावित किया कि सामाजिक मानदंडों को ध्यान में रखना चाहिए। इसी विचार पद्धति को ध्यान में रखते हुए ट्राइकॉन्टिलेंटल: सामाजिक शोध संस्थान (ब्राज़ील) के हमारे शोध के दौरान हम एमसी से मिले जिनकी उम्र चालीस साल से ज़्यादा है, नशे की आदत की वजह से उन्हें जेल में भी रहना पड़ा। एमसी ने हमें बताया कि अब वो ख़ुद को युवा महसूस करते हैं, वह स्वयं को कलात्मक रूप से अभिव्यक्त करने तथा राजनीतिक रूप से संगठित होने में सक्षम पाते हैं, अब वह सपना देखने और उस सपने को जीने की हिम्मत कर पाते हैं। हाशिये पर रहने वाले श्रमिक वर्ग के युवा बहुत कम उम्र से ही नौकरी करते हुए तथा कई बार छोटी उम्र में ही शादी करके ‘वयस्क जीवन’ जीने लगते हैं और अपनी युवावस्था से वंचित हो जाते हैं। जबकि, साधन सम्पन्न वर्ग के युवा के पास अवसर होता है कि वह अपनी युवावस्था को रोके रखे तथा जीवन की इस अवस्था को लम्बे समय तक बढ़ाकर रख सके।

युवा तथा अधिकारों के लिए संघर्ष: शिक्षा और संस्कृति

राजनीति और संस्कृति के बीच के विभाजन को युवा चुनौती देते हैं। राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष, साथहीसाथ 1968 के आंदोलनों ने कला और राजनीति को मज़बूती के साथ एकदूसरे से जोड़ दिया। ब्राज़ील में, 1990 के दशक के बाद से, रैप और हिपहॉप जैसे हाशिये के सांस्कृतिक आंदोलन के दृश्य उभरे और छा गए। इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण है, रशोनाएस एमसी, एक समूह जो साओ पाउलो के हाशिये पर रहने वालों के जीवन के गीत गाता है और जिसने ब्राज़ील में एक पूरी पीढ़ी की राजनीतिक शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। विशेष रूप से रियो डी जनेरियो में, बेली ब्लैक और ब्राज़ील के ‘फ़ंक’ नृत्य लोगों के मिलनेजुलने और उनके सामाजीकरण के महत्वपूर्ण स्थल बन गए हैं।

2000 के दशक में, कविता पाठ सत्र जिसे सराउस के नाम से जाना जाता है, तथा स्लैम कविता सत्र का बार, ओवरपास, पुल और सार्वजनिक प्लाजा जैसे स्वआयोजित सांस्कृतिक स्थानों पर आयोजन होने लगा। कला के माध्यम से युवाओं को आकर्षित किया गया, सभाओं को बढ़ावा मिला और सामाजिक नज़दीकियाँ भी बढ़ीं। इन आयोजनों में पढ़ी जाने वाली कविताएँ आमतौर पर नारीवाद, नस्लवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष और एलजीबीटीफ़ोबिया जैसे विषयों से संबंधित रही हैं। 2000 के दशक के बाद से, कम आय वाले छात्रों के लिए विश्वविद्यालय की तैयारी कराने वाले पाठ्यक्रमों में वृद्धि हुई है, जो उच्च शिक्षा के लिए पहुँच को व्यापक बनाने के लक्ष्य से किया गया है; ये जगहें भी युवाओं की बैठकबाज़ी के लोकप्रिय स्थल बन गए हैं।

 

The biggest slam poetry championship in Latin America brings together poets who express their struggles, daily dramas, and themes such as love, homophobia, machismo, and violence. São Paulo, Brazil, 2018. Sergio Silva

लैटिन अमेरिका में सबसे बड़ी स्लैम कविता प्रतियोगिता उन कवियों को साथ लाती है जो अपने संघर्ष, दैनिक क्रियाओं और प्रेम, होमोफ़ोबिया, माचिसमो तथा हिंसा जैसे विषयों को व्यक्त करते हैं। 
साओ पाउलो, ब्राज़ील, 2018. सर्जियो सिल्वा

 

साम्राज्यवाद विरोधी युवा तथा स्वास्थ्य का अधिकार

2000 के दशक में यूरोप तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में साम्राज्यवाद और बड़े यूरोपीय व्यापारिक समूहों के ख़िलाफ़ विरोध और संघर्ष के दौरान युवाओं ने श्रमिकों और अप्रवासियों के साथ मिलकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इसे भूमंडलीकरण-विरोधी आंदोलन के रूप में जाना जाने लगा। एक दशक बाद, चिली से लेकर ब्राज़ील तक के छात्रों ने सरकारी नीतियों का मुक़ाबला करने के लिए उच्च विद्यालयों पर क़ब्ज़ा कर लिया है, जो स्कूलों का पुनर्गठन करना चाहते हैं। ब्राज़ील में, सार्वजनिक परिवहन किराए में बढ़ौतरी के ख़िलाफ़ फ़्री फ़ेयर मूवमेंट (मुफ़्त यात्रा के लिए आंदोलन) द्वारा बड़े पैमाने पर सड़कों पर प्रदर्शन किया गया।

2010 के दशक में, हमने धुर-दक्षिणपंथी राष्ट्राध्यक्षों का उदय होते हुए देखा: विशेष रूप से, संयुक्त राज्य अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प, भारत में नरेंद्र मोदी, फ़िलीपींस में रोड्रिगो डुटर्टे, और ब्राज़ील में जेयर बोल्सोनारो। उनके समर्थकों में युवाओं की संख्या काफ़ी अधिक है। ब्राज़ील के मामले में, कुछ युवा फ़र्ज़ी ख़बरें फैलाने तथा घृणा और हिंसा की भाषा इस्तेमाल करने में शामिल पाए गए हैं, जो बोल्सोनारिज़्म की विशेषता है। इन सभी देशों ने COVID-19 महामारी के दौरान भयावह संक्रमण और मृत्यु दर दर्ज किया गया है, जो उनके प्रशासन द्वारा नवउदारवादी नीतियों तथा मौत को बढ़ावा देने  वाले विकल्पों का परिणाम है।

2020 में, कोरोनाशॉक ने उन सभी लोगों के जीवन, काम और आजीविका पर सबसे अधिक प्रभाव डाला जो दुनिय भर में हाशिये पर रहते हैं, इसने एकजुटता तथा स्वास्थ्य और पौष्टिक भोजन के अधिकार की ओर ध्यान दिलाया है। ब्राज़ील के युवा इन दोनों प्रवृत्तियों में सबसे आगे हैं। पहले, डिलीवरी ऐप वर्कर्स के रूप मेंमुख्य रूप से हाशिये पर रहने वाले अश्वेत और युवा लोग जो होटलों में खाना परोसने का काम करते हैं, जो एक तरह से असंगठित काम हैजिसकी वजह से दूसरों के लिए सामाजिक दूरी का पालन कर पाना संभव हो पाता है। उन्होंने काम की बेहतर परिस्थितियों के लिए विरोध प्रदर्शन का एक तरीक़ा चुना जिसे breques dos apps (ऐप को तोड़ना) के नाम से जाना जाता है, ब्राज़ील में ऐसे प्रदर्शन जुलाई के बाद से लगातार हो रहे हैं और आम लोगों का ध्यान इस ओर जारहा है। दूसरा, युवाओं ने एकजुटता अभियान को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है; इसमें शहरों में हाशिये पर रहने वाले लोगों के बीच भोजन और निजी साफ़सफ़ाई के लिए सामान का वितरण तथा अलगअलग समुदायों में संगठन बनाने का प्रयास शामिल है, इसके लिए जन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का गठन किया गया है।

 


भाग 2  ब्राज़ील: युवा, हाशिया, और भागीदारी

वर्तमान समय में, दक्षिणपंथ ने दुनिया भर में युवाओं को रूढ़िवादी आंदोलनों के अग्रिम मोर्चे पर खड़ा कर दिया; ब्राज़ील उससे अलग नहीं है। आज, ब्राज़ील की 25 प्रतिशत आबादी 15 से 29 साल के बीच की हैजो देश के इतिहास में युवाओं की सबसे बड़ी आबादी है। इसमें  कोई आश्चर्य नहीं है कि राजनीतिक और सामाजिक संगठन का इस जनसांख्यिकीय आँकड़े पर विशेष ध्यान रहता है।

इस पीढ़ी को विभिन्न प्रकार की दुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है। हालाँकि उनके मातापिता की पीढ़ी औद्योगिक विकास की अवधि में बड़ी हुई थी, लेकिन आज ब्राज़ील में युवा नवउदारवाद के वर्चस्व के आधीन हैं। हालाँकि आज के युवाओं के पास अपने मातापिता की पीढ़ी की तुलना में शिक्षा हासिल करने के अधिक अवसर हैं, लेकिन उनकी नौकरी की संभावनाएँ अधिक अस्थिर हैं। उनके मातापिता की पहले से अनुमानित और जानीपहचानी दुनिया को क्षणिक वास्तविकताओं ने प्रतिस्थापित कर दिया है; कैरियर निर्माण, नौकरी की स्थिरता और सेवानिवृत्ति योजनाओं के विचारों को एक उद्यमी विचारधारा के आधार पर लचीलेपन और तात्कालिकता की भावना से प्रतिस्थापित कर दिया गया है।

इस संदर्भ में, लोकप्रिय वामपंथ के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वह फिर से  इन युवाओं के क़रीब जाने के नये तरीक़े खोजे। आख़िर वो कौन से संगठन, सामूहिक जगहें, तथा साधन थे जो ब्राज़ील के शहरों में हाशिये पर रहने वालों के दिल और दिमाग़ को जीतते रहे हैं? लोकप्रिय युवा विद्रोह (Levante Popular da Juventude) तथा श्रमिकों के आंदोलन के अधिकार (Movimento de Trabalhadoras e Trabalhadores por Direitos or MTD) के सहयोग से ट्राइकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान(ब्राज़ील) द्वारा किए गए शोध के लिए यही दिशा दिखाने वाला प्रश्न था। अगले भाग में, हम उस शोध के परिणामें की चर्चा करेंगे, जो हमने 2019 में साओ पाउलो (दक्षिण पूर्व में), पोर्टो एलेग्रे (दक्षिण में), और फ़ोर्टालेजा (उत्तर पूर्व में) सहित ब्राज़ील के अन्य शहरों में हाशिये पर रहने वाले युवाओं के साथ किया था। जैसा कि हम चर्चा करेंगे, हमारे शोध से पता चलता है कि किस तरह नवउदारवाद ने युवाओं के जीवन में दख़लअंदाज़ी की है, और इसने कैसे जन संगठनों के लिए नयी चुनौतियाँ पैदा की है।

 

नवउदारवादी विचारधारा तथा उद्यमिता

छोटेमोटे काम, स्वतंत्र (freelance) काम, अस्थिरता और अप्रत्याशा आज ब्राज़ील में युवाओं के जीवन की पहचान है। उनकी वास्तविकता 1950 से 1970 के दशक को दौरान पैदा हुई पीढ़ी से अलग है, जोव्यापक सामाजिक असमानता का सामना करने के बावजूदइन दो संभव रैखिक रास्तों में से कोई एक चुन सकते थे: कॉलेज की शिक्षा का रास्ता, जो मुख्य रूप से उच्च तथा उच्च मध्यम वर्ग के युवाओं के लिए उपलब्ध था, या फिर वह रास्ता जो किसी ऐसी नौकर की तरफ़ लो जाए जिसके लिए अध्ययन और प्रशिक्षण की कोई ख़ास आवश्यकता हो, हाशिये पर रहने वाले युवा आम तैर पर यही रास्ता चुनते थे। जिसमें घर ख़रीदने, गृहस्थी शुरू करने, सेवानिवृत्ति तक की नौकरी आदि वाले वयस्क जीवन जीने के अवसर मुहय्या कराने के वास्ते प्रत्येक रास्ते के अपने विकल्प थे।

हालाँकि, पिछले दशकों में संगठनों के कमज़ोर होने की वजह से युवा ख़ुद को गुमसुम महसूस कर रहा है। 1980 के दशक में बने प्रमुख वामपंथी संगठनों के सामने युवाओं को संगठन में शामिल करने की चुनौती है। इसका मतलब यह नहीं है कि युवा राजनीति में शामिल नहीं हो रहे हैं, सामूहिक गतिविधियों में हिस्सा नहीं ले रहे हैं, या अपना कोई सामाजिक नेटवर्क नहीं बना रहे हैं। हमारी सामने इस बात को समझने की चुनौती यह कि युवा कहाँ और कैसे राजनीति में हिस्सा ले रहे हैं, सामूहिक भूमिका निभा रहे हैं, और अपने अनुभव, समस्या, सपने और समाधान साझा कर रहे हैं।

जब हमने युवाओं से उनके भविष्य और रोज़मर्रा की ज़िंदगी की चुनौतियों के बारे में बात की, तो एक सामान्य विषय जो उभर कर आया वह था व्यक्तिवाद तथा ‘निजी उद्यम’ का तर्क। स्थायी नौकरी और/या ’छोटेमोटे काम’ (अल्पकालिक, अस्थायी, या असंगत काम) की तलाश के अलावा, वे ’उद्यमिता’ के शरण में भी जाते हैंअपना बॉस ख़ुद बनने का सपना। उनके लिए जो अन्य नौकरियों उपलब्ध हैं उसकी तुलना में इस विचार में कुछ मात्रा में विद्रोह की भावना निश्चित रूप से है और श्रम बाज़ार के उदार दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है, जिसके अनुसार केवल कड़ी मेहनत के माध्यम से ही किसी को ‘सफलता’ मिल सकती है।

उद्यमितावाद की यह विचारधारा सार्वजनिक नीतियों की कमियों की वजह से जन्म लेती है। चूँकि नवउदारवादी नीतियाँ राज्य और उसकी सार्वजनिक नीतियों को समाप्त कर देती हैं इसलिए सार्वजनिक सुविधाएँ युवाओं के लिए सपना बन जाता है और इसमें उन्हें अपने सवालों का जवाब नहीं मिलता।

 

श्रम, शिक्षा और हिंसा

परिवार को चलाने के साथसाथ युवाओं को काम और आय की दो मुख्य चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, निश्चित रूप से जिसके लिए उन युवाओं की आवश्यकता है, जिनके पास परिवार की मदद के लिए साधन हों। अनिश्चित श्रम बाज़ार ब्राज़ील की विशेषता बन गई है जिसमें लगातार इज़ाफ़ा हो रहा है। यह ब्राज़ील के युवाओं के विशेष सच्चाई है, क्योंकि अधिकांश दक्षिण अमेरिकी देशों की तुलना में यहाँ कम उम्र में श्रम बाज़ार में प्रवेश करना सामन्यसी बात  है। इस संदर्भ में, गुणवत्ता वाला काम खोजने के लिए ‘अनिवार्य’ क़दम के रूप में शिक्षा की उपयोगिता युवाओं के लिए अब कोई ख़ास महत्व नहीं रखता; उनके पास अपने उन दोस्तों, रिश्तेदारों, या पड़ोसियों की ऐसी अनगिनत कहानियाँ हैं जि​​न्हें कॉलेज से स्नातक करने के बाद उनकी डिग्री के अनुरूप उनको नौकरी नहीं मिली।

हमारा शोध इस बात को भी पुष्ट करता है, जिसके बारे में आँकड़े भी बताते हैं, वह है हाशिये पर रहने वाले युवाओं के जीवन में हिंसा की मौजूदगी, जो अक्सर पुलिस की क्रूरता, नशीली दवाओं से संबंधित अपराध और घरेलू हिंसा के रूप में होती है। एक ऐसे संदर्भ में जहाँ हाशिये पर रहने वाले युवाओं के लिए अपराध को एक विकल्प के रूप मे प्रस्तुत किया जाता है, ऐसे बहुत से युवा हैं जिनके रिश्तेदार या मित्र जेल में रह चुके हैं या अब भी जेल में हैं।

संस्कृति, सामूहिकता और युवाओं को संगठित करने के तरीक़े

इस संदर्भ में, संस्कृति युवाओं को संगठित करने का एक रास्ता बन जाती है, चाहे उसका निर्माण किया जाए या फिर आनंद लिया जाए। जो लोग एक बैंड बनाना चाहते हैं, वो एमसी जैसा बैंड बना सकते हैं, नृत्य कर सकते हैं, या उन नाटकों में प्रदर्शन कर सकते हैं, जो ब्राज़ील के ‘फ़ंक’ डांस पार्टी और कॉन्सर्ट में होता है, या रैप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। युवा लोग संस्कृति के आसपास जुट रहे हैं। ऐसा बड़े हिस्से में हो रहा है, क्योंकि ये जगहें सामूहिकता की भावना को बढ़ावा देने में सक्षम हैं और सृजन तथा सामाजीकरण के लिए अवसर प्रदान करते हैं।

यह युवाओं को संगठित करने की कुंजी हो सकती है। व्यक्तिवाद के बढ़ते प्रभाव के बावजूद, युवा सामूहिक स्थानों की तलाश कर रहे हैं। जैसा कि हमारे शोध से पता चलता है, कई धार्मिक संगठनों और सांस्कृतिक समूहों ने युवाओं को जुटाने के लिए इस रणनीति को अपनाया है। कुल मिलाकर, जिन हाशियों का हमने विश्लेषण किया है, वे ऐसी जगहें विकसित कर रहे हैं जो सामाजिकता विकसित करने के साथसाथ युवाओं के निजी विकास में भी योगदान देता है;  वे व्यक्तिवादी मानसिकता को चुनौती नहीं देते हैं, बल्कि व्यक्ति के विस्तार के विचार के आधार पर सामूहिकता की भावना निर्मित करते हैं। दूसरे शब्दों में, इन सांस्कृतिक सामूहिकता का उद्देश्य युवाओं के व्यक्तिगत विकास में मदद करना है ताकि वे दुनिया का सामना करने के लिए अपनेआप को बेहतर ढंग से तैयार कर सकें। युवा इन सामूहिक जगहों को अपने जीवन को बेहतर बनाने के तरीक़े के रूप में देखते हैं, चाहे वे दोस्तों का समूह बनाकर और/या काम, आय तथा शिक्षा/व्यावसायिक प्रशिक्षण के अवसरों के रूप में हों।

 

Youth mark points of reference in their neighborhood during collective mapping research. State of São Paulo, Brazil, 16 October 2019. Stella Parterniani / Tricontinental: Institute for Social Research

सामूहिक मानचित्रण अनुसंधान के दौरान स्थानीय युवा अपनी भूमिका को निभाते हुए। साओ पाउलो राज्य, ब्राज़ील, 16 अक्टूबर 2019।
स्टेला पारतेरनियानी/ ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान

 

भाग 3  ब्राज़ील के हाशिये का समाज और महामारी: असमानता, प्रतिरोध और एकजुटता 

 

क्षेत्र, नस्ल और वर्ग की असमानताएँ

COVID-19 महामारी के प्रभाव ने विद्यमान असमानताओं को उजागर किया है तथा उसे और बढ़ा दिया है। इससे पीड़ित अधिकांश लोग हाशिये पर रहते हैं, चाहे ब्राज़ील के हाशिये पर या दुनिया भर के हाशिये पर। ब्राज़ील के उत्तरी और उत्तर-पूर्वी राज्यों के हाशिये पर, या उन इलाक़ों में जहाँ मुख्य रूप से अश्वेत लोग रहत हैं, जो अधिक जोखिम के बीच जी रहे हैं, क्योंकि इन इलाक़ों में सार्वजनिक तथा सरकारी सेवाएँ उन तक ठीक से नहीं पहुँचतीं। जानबूझकर मामले की कम रिपोर्टिंग करने, ख़ास तौर पर कम जाँच करने के बावजूद, ब्राज़ील के सरकारी स्वास्थ्य विभागों द्वारा जारी किए गए आँकड़े बताते हैं कि वायरस ने लोगों को मारने में एक समान व्यवहार नहीं किया है। भले ही COVID-19 विमान से आया, जिसे संभ्रांत इलाक़ों में रहने वाले श्वेत लोग देश के भीतर लेकर आए, लेकिन इन संभ्रांत इलाक़ों में बेहतर बुनियादी ढाँचे की वजह से हाशिये के अश्वेत इलाक़ों में रहने वालों की तुलना में मृत्यु दर कम है।

एक और ऐतिहासिक कारण जिसकी वजह से ब्राज़ील में COVID-19 के मामलों और उससे होने वाली मृत्यु का असमान वितरण दिखाई पड़ता है, वह वजह है लोगों के बीच भूमि का असमान वितरण। ब्राज़ीलियाई भूगोल और सांख्यिकी संस्थान (IBGE) और 2018 सतत राष्ट्रीय घरेलू नमूना सर्वेक्षण (PNADC) के आँकड़ों से पता चलता है कि ब्राज़ील की लगभग 13 प्रतिशत आबादीलगभग 2 करोड़ 70 लाख लोगकमसेकम एक अपर्याप्त संरचना वाले घरों(जैसे कि उसमें निजी उपयोग के लिए शौचालय नहीं होता, या जिन सामग्रियों से दीवारें बनी होती हैं वो टिकाऊ नहीं होतीं) में रहते हैं, जिसमें बहुत सारे लोग रहते हैं, या फिर ऐसे मकान में रहते हैं जिनके लिए उन्हें बहुत ज़्यादा किराया देना होता है। इन सर्वेक्षणों के अनुसार, ब्राज़ील की आबादी का 35.7 प्रतिशत– 7 करोड़ 40 लाख  से अधिक लोगउन घरों में रहते हैं जहाँ सीवेज उपचार प्रणाली नहीं है। पर्याप्त आवास की कमी तथा स्वच्छता के अभाव का असर श्वेत लोगों की तुलना में अश्वेत लोगों के साथसाथ असंगठित श्रमिकों और औपचारिक शिक्षा की कमी वाले लोगों पर अधिक पड़ता है।

ब्राज़ील में असमानता सबसे मौलिक अधिकार यानी जीवन के अधिकार को प्रभावित करती है। इंस्टीट्यूट फ़ॉर एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (IPEA) द्वारा निर्मित ‘हिंसा एटलस’ (2019) के अनुसार, 2019 में देश में मानव हत्या के शिकार 75.5 प्रतिशत लोग अश्वेत थे। सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि पिछले एक दशक (2007-2017) में अश्वेत ब्राज़ीली नामगरिकों की मृत्यु दर में 33 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि इसी अवधि में श्वेत ब्राज़ीली नागरिकों की मृत्यु दर में केवल 3.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ये ब्राज़ील के समाज में संरचनात्मक नस्लवाद के केवल कुछ उदाहरण हैं।

जैसा कि यह आँकड़ा दर्शाता है, जो लोग और क्षेत्र पहले से ही संरचनात्मक रूप से विषम परिस्थितियों का सामना कर रहे हैंजिसे, ब्राज़ील में, नस्ल और वर्ग से अलग करके नहीं देखा जा सकता हैवे महामारी से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। इस वास्तविकता को रियो डी जेनेरियो (पीयूसीरियो) के पोंटिफ़िकल कैथोलिक विश्वविद्यालय के स्वास्थ्य सूचना और संचालन केंद्र द्वारा और ज़्यादा बेहतर ढंग से समझाते हुए बताया है कि उच्च शिक्षा प्राप्त श्वेत लोगों की तुलना में बिना किसी तरह की औपचारिक शिक्षाप्राप्त अश्वेत लोगों के COVID-19 से मरने की संभावना चार गुना अधिक है। ब्राज़ील के उत्तरी क्षेत्र में शहरी हाशिये पर रहने वाले लोगों में मृत्यु दर सबसे अधिक है, और इस क्षेत्र की 20 प्रतिशत से अधिक आबादी उन क्षेत्रों में रहती है जहाँ से उन्हें COVID-19 के गंभीर मामलों में उपयुक्त स्वास्थ्य सेवा हासिल करने के लिए निकटतम शहर तक पहुँचने में चार घंटे का समय लगता है। 

हालाँकि, देश का सबसे बड़ा और सबसे अधिक आबादी वाला शहर साओ पाउलो, महामारी का केंद्र रहा है, लेकिन शहर की मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से थोड़ा ही ऊपर थी। हालाँकि, शहर भर में मृत्यु दर का असमान वितरण पहले से मौजूद असमानताओं को उजागर करता है: सबसे अधिक प्रभावित होने वाले लोग शहर के हाशिये पर रहते हैं जिनमें अधिक संख्या अश्वैत या बहुनस्लीय लोगों की है, ये इलाक़े  शहर के औसत इलाक़े से अधिक प्रभावित हैं। ये ऐसे क्षेत्र भी हैं जहाँ अस्पताल में बिस्तर की संख्या विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सुझाव की तुलना में बहुत कम है और जहाँ शहर के बाक़ी हिस्सों की तुलना में डॉक्टर को दिखाने के लिए अपनी बारी आने का ज़्यादा समय तक इंतज़ार करना पड़ता है।

हम जानते हैं कि COVID-19 भीड़भाड़ वाली जगहों और यात्रा के दौरान तेज़ी से फैलता है- दोनों ही स्थितियाँ हाशिये पर रहने वालों के बीच मौजूद हैं। ऐसे इलाक़ों में  रहने वाले लोग घरेलू नौकर हैं और उन्हें सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करके उन घरों में जाना पड़ता है; अश्वेत नर्स तकनीशियन जिन्हें अक्सर व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) के बिना काम पर जाना पड़ता है; ऐप द्वारा सामान डिलीवरी करने वाले कार्यकर्ता जो बहुत थोड़े से पैसे के लिए शहर भर में घूमते हैं; ऐसे और कई उदाहरण हैं। हाशिये पर रहने वाले ऐसे कथित आवश्यक श्रमिकोंइन क्षेत्रों में नियोजित श्रमिकों में जिनकी हिस्सेदारी अधिक हैकी वजह से ही देश तथा शहर के अमीर इलाक़ों के लोग ख़ुद को क्वारंटीन में रख पाते हैं।

हाल के सर्वेक्षणों से पता चलता है कि डिलीवरी ऐप कार्यकर्ता जो अपनी मोटरसाइकिल या किराये की बाइक से घरघर सामान पहुँचाते हैं, वे आमतौर पर हाशिये पर रहने वाले अश्वेत युवा पुरुष होते हैं। जैसा कि शोधकर्ता मारिया ऑगस्टा तवारेस बताती हैं, संकट के समय में, ये तथाकथित उद्यमी ‘बाहर फँस गए हैं’ और सबसे अनिश्चित श्रमिकों में से हैं; नतीजतन, उन्हें संक्रमित होने और उनके द्वारा वायरस फैलने का अधिक जोखिम है।

 

Ato dos secundaristas contra a máfia da merenda foi reprimido pela PM e um estudante foi preso. São Paulo - SP, Brasil, 2016. Mídia Ninja

‘स्कूल लंच माफ़िया’ के ख़िलाफ़ हाई स्कूल के छात्रों के विरोध का सैन्य पुलिस द्वारा दमन किया गया; एक छात्र को गिरफ़्तार किया गया। साओ पाउलो सिटी (ब्राज़ील), 2016।  
मिडिया निंजा

 

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हाशिये पर रहने वाले अश्वेत युवाओं का जीवन महामारी से बहुत पहले से ही खतरे में था: अश्वेत आंदोलनों, विद्वानों और कार्यकर्ताओं ने ब्राज़ील सरकार द्वारा हाशिये पर रहने वाले अश्वेत युवाओं के ख़िलाफ़ नरसंहार की लगातार निंदा की है। संयुक्त राष्ट्र की सिफ़ारिशों के बावजूद, सरकार महामारी के दौरान भी लोगों को उनकी जगहों से बेदख़ल करने में लगी है, जिसकी वजह से मौत को बढ़ावा मिल रहा है। जिस समय ‘घर पर रहना’ एक सर्वव्यापी नारा बन गया है, ब्राज़ील की सरकार इसकी परवाह नहीं करती है और यहाँ तक ​​कि आवास के अधिकार पर हमला करती है, हाशिये पर रहने वालों के घरों को नष्ट करती है और उनके परिवारों की उपेक्षा करती है।

हमारे देश में नस्लीय अलगाव, नस्लवाद और नेक्रोपोलिटिक्स की राज्य नीतियाँ नयी नहीं हैं। हमें नस्लीय संदर्भ की सटीक समझ के साथ ही ब्राज़ील में सामाजिक संबंधों का अध्ययन करना चाहिए। इसमें ब्राज़ील की असमानता के मुख्य संकेतकों में से एक का मूल्यांकन शामिल है: वह है भूमि तक पहुँच, चाहे भोजन उगाने के लिए हो या सिर्फ़ रहने के लिए; चाहे ग्रामीण क्षेत्र में हो या शहरी क्षेत्र में। जिस तरह से हमारे शहरों के विभिन्न निकायों, रहने, काम करने, यात्रा करने की जगहों पर कुछ ख़ास नस्ल और रंग के लोगों का क़ब्ज़ा है उससे संरचनात्मक नस्लवाद साफ़ तौर पर झलकता है। एक बार फिर, महामारी और इसके घातक परिणाम ने इन असमानताओं को उजागर कर दिया है। कुछ लोगों के पास रहने के लिए घर नहीं  है; अन्य लोग तो अपने घर के भीतर सुरक्षित हैं और ही घर के बाहर। हाशिये पर रहने वाले अश्वेत युवाओं के जीवन पर लगातार ख़तरा मंडरा रहा है: अगर वे घर से बाहर हैं तो उन्हें वायरस का ख़तरा है और अगर घर के अंदर हैं तो सरकार से ख़तरा है।

 

ग़रीबों के बीच आय और काम

विश्वविद्यालयों और अनुसंधान के सामूहिक प्रयासों ने महामारी संबंधी असमानता पर ज्ञान के उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 5 और 11 मई 2020 के बीच देश के 6 महानगरीय क्षेत्रों में 70 से अधिक सामुदायिक नेताओं के साथ सॉलिडैरिटी रिसर्च नेटवर्क बुलेटिन द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि माहामारी के परिणामस्वरूप हाशिये पर रहने वाले लोगों के सामने भूख की समस्या सबसे पहली समस्या है। उसी सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है माहामारी के परिणामस्वरूप हाशिये पर रहने वाले लोगों के सामने दूसरी सबसे बड़ी समस्या है बेरोज़गारी, कम मज़दूरी, और आय की कमी। सामुदायिक नेताओं ने असंगठित और स्वनियोजित श्रमिकों पर पड़ने वाले महामारी के प्रभाव को रेखांकित किया है, जो अपने आय का स्रोत गँवा चुके हैं और इसकेलिए उन्हें किसी तरह का मुआवज़ा भी नहीं मिला या उन्हें यह भी नहीं पता कि वे फिर कब काम पर लौट सकेंगे। उदाहरण के लिए, दैनिक मज़दूरी वाले घरेलू कामगारों, देखभाल और रखरखाव का काम करने वालों और निर्माण मज़दूरों के साथ ऐसा ही हुआ है।

क्योंकि हम पहले से मौजूद संकट के बीच रह रहे हैं जो अब और संकटग्रस्त हो गया है, पिछले वर्षों के सामाजिक संकेतक पहले से ही काफ़ी नीचे थे। ब्राज़ील के पूर्व राष्ट्रपति मिशेल टेमर ने 2017 में श्रम सुधार लागू किया था, देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की संख्या संगठित क्षेत्र के श्रमिकों से अधिक हो गई। 2020 में, रोज़गार के आँकड़े और भी भयावह स्तर पर पहुँच गए। सेंटर फ़ॉर लेबर इकोनॉमिक्स एंड ट्रेड यूनियनिज्म(CESIT) द्वारा प्रकाशित एक सर्वेक्षण के अनुसार, 2020 की पहली तिमाही में 49 लाख अतिरिक्त नौकरियाँ समाप्त हो गईं,  और कुल मिलकार ऐसे लोगों की संख्या 7 करोड़ 9  लाख हो गई जिनकी नौकरी चली गई। देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि ब्राज़ील की 50 प्रतिशत से अधिक आर्थिक रूप से सक्रिय जनसंख्या (यानी, सभी लोग जो कामकाजी उम्र के हैं) बेरोज़गार हैं (Teixeira and Borsari, 2020)। इसका मतलब है कि कामकाजी उम्र के लगभग 7 करोड़ 10 लाख ब्राज़ीली नागरिक, या देश की लगभग एक तिहाई आबादी काम नहीं कर रही है (संगठित या असंगठिक रूप से), या उन्हें काम की तलाश नहीं है।

नेटवर्क ऑफ़ स्टडीज़ एंड मॉनिटरिंग ऑफ़ लेबर रिफ़ॉर्म की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, डिलेवरी ऐप के कर्मचारी महामारी के दौरान प्रति दिन अधिक समय तक काम करने के बावजूद कम पैसे कमा रहे हैं। सर्वेक्षण में 26 राज्यों के 252 श्रमिकों का साक्षात्कार लिया गया, जिनमें से 52 प्रतिशत सप्ताह में 7 दिन काम कर रहे हैं, और 25 प्रतिशत सप्ताह में 6 दिन काम कर रहे हैं। साक्षात्कार में हिस्सा लेने वाले 89.7 प्रतिशत श्रमिकों ने कहा कि महामारी के दौरान उनकी आय कम हुई है या पहले जितनी ही है, जबकि केवल 10.3 प्रतिशत श्रमिकों ने कहा कि इस अवधि में उनकी आय में वृद्धि हुई है। महामारी से एक सप्ताह पहले लगभग आधे श्रमिक (48.7 प्रतिशत) एक सप्ताह में 520 डॉलर कमाते थे, लेकिन क्वारंटीन शुरू होने के बाद इसमें 72.8 प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गई (एबलियो तथा अन्य, 2020)।

ऐसे में यह सवाल उठता है: महामारी के दौरान युवाओं के साथ क्या हो रहा है? पीएनएडीसी के अनुसार, 2020 की पहली तिमाही में 18 से 24 साल के युवाओं के बीच बेरोज़गारी बढ़ गई है, जो ब्राज़ील के उत्तरपूर्व में 34.1 प्रतिशत के उच्च स्तर पर पहुँच गई है। इसी अवधि में, बेरोज़गारी का राष्ट्रीय औसत 27.1 प्रतिशत था, जबकि 2019 की पहली तिमाही में यह दर 23.8 प्रतिशत था। अधिकांश बेरोज़गार युवा महिलाएँ हैं (14.5 प्रतिशत महिलाएँ बेरोज़गार हैं, जबकि पुरुषों में यह दर 10.4 है), जो स्वयं को अश्वेत या बहुनस्लीय मानती हैं(उनमें बेरोज़गारी दर क्रमशः 15.2 प्रतिशत और 14 प्रतिशत है, जबकि स्वयं को श्वेत मानने वाली महिलाओं में बेरोजगारी दर 9.8 प्रतिशत है), और हाई स्कूल से स्नातक तक की पढ़ाई भी नहीं की है(स्नातक तक की भी पढ़ाई नहीं करने वालों में बेरोज़गारी दर 20.4 प्रतिशत, जबकि उच्च शिक्षा की डिग्री वालों में उसकी तुलना में 6.3 प्रतिशत है)

 

Second breque dos Apps (‘breaking the apps’) protest: delivery app workers go on strike. São Paulo, Brazil, 25 July 2020. Roberto Parizotti/Fotos Públicas

दूसरा ब्रीक़ डॉस ऐप्स (‘ऐप्स को तोड़ो’) विरोध प्रदर्शन: डिलीवरी ऐप वर्कर्स हड़ताल पर चले गए। साओ पाउलो, ब्राज़ील, 25 जुलाई 2020।
रॉबर्टो पारिजोटी/फोटोस पुब्लिकास

 

पूरे लैटिन अमेरिका के युवाओं के बीच यही पैटर्न दिखाई दे रहा है। मई में, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन के लिए अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के क्षेत्रीय निदेशक, विनियस पिनेहिरो ने 2020 के वैश्विक रोज़गार रुझान: प्रौद्योगिकी और नौकरियों का भविष्य’ नामक रिपोर्ट में 15 से 24 वर्ष के श्रमिकों की स्थिति का उल्लेख किया है। रिपोर्ट में इस बात को रिखांकित किया गया है कि लैटिन अमेरिका और कैरिबियन 2 करोड़ 30 लाख युवा ऐसे हैं जो तो पढ़ाई कर रहे  हैं, न ही कोई काम या प्रशिक्षण, उनके अलावा 94 लाख युवा बेरोज़गार हैं। इसके अलावा, 3 करोड़ युवाओं के पास केवल असंगठित क्षेत्र का रोज़गार ही एक मात्र विकल्प है (जो इस क्षेत्र की युवा आबादी का पाँचवाँ हिस्सा है)

इस संकट ने पुरुषों और महिलाओं के बीच असमानता को भी बढ़ाया है। युवा महिलाओं को सबसे मुश्किल हालात का सामना करना पड़ा है: 14.9 प्रतिशत युवा पुरुषों की तुलना में 28.9 प्रतिशत युवा महिलाएँ तो शिक्षित हैं, काम कर रही हैं, ही प्रशिक्षण ले रही हैं। पीएनएडीसी के आँकड़ों से पता चलता है कि मई के अंतिम दो सप्ताह में 70 लाख महिलाओं ने श्रम बाज़ार को छोड़ दियाइस अवधि में श्रम बाज़ार छोड़ने वाले पुरुषों की तुलना में यह संख्या 20 लाख से अधिक है। COVID-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई के मोर्चे पर अधिक संख्या में महिलाएँ ही तैनात हैं। ब्राज़ील के फ़ेडरल बोर्ड ऑफ़ नर्सिंग (Conselho Federal de Enfermagem) के अनुसार नर्सिंग टीमों में भी महिला स्टाफ़ की संख्या अधिक है, जो ब्राज़ील में सभी नर्सों, नर्सिंग सहायकों और नर्स तकनीशियनों का 84.6 प्रतिशत है। क्वारंटीन के दौरान घरेलू काम का सबसे अधिक बोझ महिलाओं ने ही उठाया है। 2019 के आईबीजीई के आँकड़े से पता चलता है कि महामारी से पहले, महिलाएँ प्रति सप्ताह घर और देखभाल के काम के लिए औसतन 18.5 घंटे ख़र्च करती थीं, जबकि पुरुष इसी काम के लिए एक सप्ताह में औसतन 10.3 घंटे ख़र्च करते थे। महामारी के दौरान यह अंतर निस्संदेह बढ़ा है।

घरेलू और लिंग आधारित हिंसा भी क्वारंटीन के दौरान बढ़ रही है, ख़ासकर बड़े शहरों के हाशिये के इलाक़ों में। जब महिलाएँ और बच्चों को- साथ-ही-साथ LGBTQIA + समुदाय कोअपने दुराचारियों के साथ रहने के लिए मजबूर होना पड़ा है, घर में रहना उन्हें अधिक असुरक्षित बनाता है और उनके जीवन को ख़तरे में डालता है।

 

कोरोनाशॉक के दौरान हाशिये के युवा और एकजुटता

चूँकि राज्य और सरकारें COVID –19 के ख़िलाफ़ रक्षात्मक कार्रवाई करने तथा अलगअलग इलाक़ों और क्षेत्रों में ज़रूरत के हिसाब से पीड़ितों की देखभाल करने में विफल रही, तभी ब्राज़ील के लोगों के बीच एक शब्द गूँजने लगा: एकजुटता। कोरोनाशॉक ने कई युवा समूहों, कलाकारों, सामूहिक समूहों, सामाजिक संगठनों, स्थानीय संगठनों, दोस्तों, परिवारों और यहाँ तक ​​कि व्यक्तियों को एकजुटता अभियान और कार्यों को शुरू करने के लिए और उन लोगों की मदद करने के लिए प्रेरित किया जो पहले से इस तरह का काम कर रहे थे। वायरस और ब्राज़ील सरकार द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने और उन्हें दूर करने के नये तरीक़े खोजने के प्रयास ने इन युवाओं को राजनीतिक कार्यकर्ता और नायक के रूप में आगे आने के लिए प्रेरित कियाख़ासकर तब जब आय बनाए रखने, सभी तक भोजन पहुँचाने और स्वास्थ्य तथा देखभाल को बढ़ावा देने की बात आई।

भोजन के संग्रहण और वितरण, सेनेटाइज़र और निजी साफ़सफ़ाई के उत्पादों में एकजुटता की बहुत ज़रूरत थी। हालाँकि, दो प्रकार की एकजुटता आधारित कार्रवाई उभरकर सामने आई: पहली ‘Solidarity, Inc.’ की ओर से की जाने वाली एकजुटता कार्रवाई और दूसरी जनता द्वारा की जाने वाली एकजुटता कार्रवाई। ‘Solidarity, Inc.’ की ओर से की जाने वाली एकजुटता कार्रवाई बड़ी कंपनियों और निगमों के दान पर आधारित है। भूमिहीन श्रमिक आंदोलन के राष्ट्रीय बोर्ड के सदस्य केली माफ़र्ट ने ‘Solidarity, Inc.’ (2020) का शब्द गढ़ा है।

 ‘Solidarity Inc.’ दान की तरह काम करता हैयह ऊपर से नीचे की ओर लम्बवत काम करता है, यह उन लोगों के बीच संबंध पर आधारित है, जिनके पास देने को कुछ है और देना चाहते हैं तथा जिन्हें इसकी ज़रूरत है और लेना चाहते हैं। जो लोग ऐसा दान लेते हैं वो इसे दानकर्ताओं द्वारा किया जाने वाला परोपकार मानते हैं, दूसरों को समझने और उनके साथ संबंध स्थापित करने का वैसा ही एक तरीक़ा जिसे पाउलो फ्रेयर ‘शिक्षा का बैंकिंग मॉडल’ कहते हैं। जब बड़े निगमों की बात आती है, तब हम यह जानते हैं कि दान की वजह से निकट भविष्य में कंपनियों और उनके लाभ में बढ़ौतरी होने की संभावना रहती है।

इससे बिलकुल उलट जनता द्वारा की जाने वाली एकजुटता कार्रवाई हाशिये के लोगों द्वारा हाशिये के लोगों के लिए की जाती है। यह एक स्वत:निर्मित संबंध पर आधारित है, जिसे पाउलो फ्रेयर ने लोकप्रिय शिक्षा के समान कहा है। जिसमें एकजुटता को ही एक ऐसे रिश्ते के रूप में देखा जाता है, जिसमें सभी लोग शामिल होते हैं और सभी के पास एकदूसरे के लिए कुछकुछ होता है, एक साझा परियोजना के आधार पर लोगों का संगठन निर्मित किया जाता है और उसे बढ़ाया जाता है। 

कई शहरी और ग्रामीण संगठन लोकप्रिय एकजुटता अभियानों का हिस्सा हैं। वे सामान इकट्ठा करते और बाँटते हैं, युवाओं को शामिल करते हैं, और परिस्तिथितिकीआधारित कृषि उत्पादोंजो कृषि सुधार का परिणाम हैको हाशिये के घरों के ख़ाली बर्तनों तक पहुँचाते हैं। इस प्रक्रिया में शहर और गाँव के लोगों के बीच संबंध विकसित होता है; इससे सरकार के ख़िलाफ़ लड़ने और लोकप्रिय कृषि सुधार तथा शहरी सुधार के लिए संघर्ष जारी रखने वाले नेटवर्क को मज़बूती मिलती है। इन प्रयासों तथा पूँजीवाद द्वारा हमारे ऊपर थोपी गई उदासीनता को युवाओं द्वारा अस्वीकार करने के से प्रेरित होकर, हम ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान युवाओं से आहवान करते हैं कि वे इसी तरह सपना देखने का साहस करते रहें और एक ऐसे भविष्य का निर्माण करें जिसमें वर्तमान समय की पीड़ा और दुख हो, और ऐसा मुमकिन है। इसके साथ ही युवा वायरस और दूसरे विनाशकारी जीवों के नाम पर फैलाई जाने वाली बहसों का भी जवाब दें, जो मानवता और इस धरती को तबाही की ओर ले जा  रहे हैं।

 

Solidarity action with families in vulnerable situations in the peripheries of Curitiba and Araucária organised by the Landless Workers’ Movement (MST) and Sindipetro-PR/SC, the oil workers’ union of Santa Catarina. Paraná, Brazil, 1 August 2020. Giorgia Prates/Brasil de Fato

कूर्टिबा और अरूकेरिया के हाशिये पर बेहद ख़राब स्थितियों में रहने वाले परिवारों के साथ भूमिहीन श्रमिक आंदोलन (MST) और संताप्रेट्रो-पीआर/एससी, सांता कैटरीना के तेल श्रमिक संघ द्वारा आयोजित एकजुटता की कार्रवाई। पराना, ब्राज़ील, 1 अगस्त 2020।
जियोर्जिया प्रेट्स/ब्रासिल डे फेटो

 

 

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Tavares, Maria Augusta. ‘Empreendedores: presos do lado de fora’ [‘Entrepreneurs: Trapped Outside’]. Termômetro da Política, 2 June 2020 (www.termometrodapolitica.com.br/2020/06/02/empreendedores-presos-do-lado-de-fora/), Date of Access: 24 August 2020.

Teixeira, M., Borsari, P. ‘Mercado de trabalho no contexto da pandemia: a situação do Brasil até abril de 2020’ [‘Labour Market in the Contexto of the Pandemic: Brazil’s Situation by April 2020’]. Centro de Estudo Sindicais e de Economia do Trabalho [Centre for Labour Economics and Trade Unionism]. (www.cesit.net.br/wp-content/uploads/2020/06/Marilane-e-Pietro-Mercado-de-trabalho-1o-quadrimestre-2020-vf2.pdf), Date of Access: 24 August 2020.

Tricontinental: Institute for Social Research. Apresentação da cartilha sobre juventude e participação nas periferias brasileiras [Study on the Participation of Youth in the Peripheries of Brazil], 5 June 2020 (www.thetricontinental.org/pt-pt/brasil/apresentacao-da-cartilha-sobre-juventude-e-participacao-nas-periferias-brasileiras/).

 

During the sixth iteration of Marmita Solidária (‘Solidarity Prepared Meals’) in Rio de Janeiro, 300 meals were prepared with food produced by family farms in settlements organised by the MST. In addition to solidarity, the meals carry political messages with them, such as the Fora Bolsonaro (‘Out, Bolsonaro’) campaign. Rio de Janeiro, Brazil, 24 August 2020. MST/RJ

रियो डी जनेरियो में मारमिता सोलिडैरिया (एकजुटता द्वारा तैयार भोजन) की छठी पुनरावृत्ति के दौरान MST द्वारा बसाई गई बस्तियों में पारिवारिक खेतों में उगाए गए उत्पादों द्वारा 300 लोगों के लिए भोजन तैयार किया गया। एकजुटता के अलावा, भोजन अपने साथ राजनीतिक संदेश लेकर भी चलता है, जैसे कि फोरा बोल्सनारो (‘बोल्सोनारो को बाहर करो’) अभियान का संदेश। रियो डी जनेरियो, ब्राज़ील, 24 अगस्त 2020।
एमएसटी / आरजे

 


1 : कोरोनाशॉक एक पद है जो बताता है कि एक वायरस ने दुनिया को कितने दिलचस्प तरीक़े से प्रभावित किया है। यह पद इस बात को भी रेखांकित करता है कि बुर्जुआ राज्य में सामाजिक व्यवस्था कैसे चरमरा गई, जबकि दुनिया के समादवादी हिस्सों में समाजवादी व्यवस्था अधिक मज़बूती के साथ उभरकर सामने आई।

2 :हमारे शोध की विधि के बारे में अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें Study on the Participation of Youth in the Peripheries of Brazil